स्वभावत: मनुष्य अभिव्यक्त हुए बिना रहता नहीं और आजकल सोशल मीडिया के प्रसार के बाद तो प्रत्येक व्यक्ति सहजता से लोगों के सामने अपने विचार और भावनाएँ रखने लगा है।
एक देखा कि फेसबुक जैसे माध्यम का उपयोग १०-५ पंक्तियों में अपनी बात रखने तक सीमित रह जाता है। सामान्यत: सामने उपलब्ध सामाजिक, राजकीय परिवेश में कभी किसी मुद्दे पर कुछ विस्तार से लिखने का मन करता है… ऐसे में अपने ब्लॉग के माध्यम से अभिव्यक्त होना सुविधाजनक लगता है। फिर एक बात और… एक संन्यासी के तटस्थ तथा लगावरहित दृष्टिकोण से अनेक मामलों में हमारी बात अन्य बहुतसे लोगों से भिन्न होती है…. तब तो विस्तार से व्यक्त होना आवश्यक हो जाता है।
इतना तो निश्चित है कि चर्चा के किसी भी विषय में हम व्यक्तिगत रूप से पक्षधर नहीं हैं… जो भी सामने आया, उसके बारे में एक निष्पक्ष दृष्टिकोण से अपना मत व्यक्त करने का भाव रहेगा । इस लेखन में न तो किसी प्रकार के बोझिल ’वैचारिक’ सिद्धान्त प्रस्तुत करने का हमारा मन्तव्य है, न ही नीतिशास्त्र या अध्यात्म की खुराक देने का कोई इरादा है…. बस, किसी विषय के बारे में मन ने कुछ निष्कर्ष निकाले तो लिख देंगे….. “बस, यूँही…!”
यह निश्चित है कि इस ब्लॉगलेखन को हम प्रतिदिन नियमित रूप से नहीं कर पायेंगे…. पर इतना अवश्य है कि समय-समय पर कुछ न कुछ अवश्य लिखते रहेंगे।
– स्वामीजी १४मई२०१७
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